Sunday 25 August 2019

द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रम्

द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रम्


सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम्।।1।।

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबंधेतु रामेशं नागेशं दारुकावने।।2 ।।

वाराणस्यांतु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालयेतु केदारं घुश्मेशंच शिवालये।।3।।

एतानि ज्याेतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।4।।

।।इति द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रम्।।

Tuesday 20 August 2019

प्रेमनाथपञ्चकम्

प्रेमनाथपञ्चकम्

अथ विक्रमस्य 2075 वर्षे साधारणनामसंवत्सरदक्षिणायने वर्षाऋतौ  श्रावणकृष्णपञ्चम्यां ज्योतिषचन्द्रात्मजो देवाङ्गशर्माऽहं मम जन्मदिनावसरे अकारणकरुणावरुणालयसाम्बसदाशिवप्रेमनाथप्रीतये प्रसन्नतायैच स्वरचितपद्यपंचकपंकजविवफलश्रृतिपंचकपंकजसहितप्रेमनाथपदपंकजयो: प्रीयताम् ।।

प्रेमनाथपञ्चकम्

विभुं विश्वभुग्विश्वकृद्विश्वनाथं
भयानां भयं भूतनाथं महान्तम् ।
श्रृते: साररूपं श्रृतिज्ञानगम्यं
स्मरामो नमाम: प्रभुं प्रेमनाथम् ।।1।।

अगम्यम् अयुग्मम् अपारम् अयोनिम्
नकारादिवन्द्यं नम: शूलपाणिं ।
निदिध्यासने संस्थितं वैष्णवं तं
स्मरामो नमाम: प्रभुं प्रेमनाथम् ।।2।।

भवं भावगम्यं सुरम्यं शरीरी
भयानां भयं भासकं भासकानाम् ।
स्मशानाधिवासी जटाजूटयुक्तं
स्मरामो नमाम: प्रभुं प्रेमनाथम् ।।3।।

प्रचण्डं प्रगल्भं दिनेशस्य ईशं
तम: क्षालयन् पुण्यदाता च भोक्ता ।
गुणागारसंसारसारम् अपारं
स्मरामो नमाम: प्रभुं प्रेमनाथम् ।।4।।

महादेवदेवं महेशं सुरेशं
सुरै:स्वर्चितं वेदवेद्यं च वन्द्यम् ।
विरूपाक्षभर्गं हरं सर्पहारं
स्मरामो नमाम: प्रभुं प्रेमनाथम् ।।5।।

।।अथ फलश्रृति:।।

य इदं पञ्चकं नित्यं अधीते नियतात्मभि: ।
शिवप्रसादवाप्नोति शिवेन सह मोदते ।।6।।

एककालं द्विकालं वा त्रिकालं श्रद्धयान्वित: ।
प्रदोषे शिवपर्वे च जपतां सिद्धिमाप्नुयात् ।।7।।

नित्यं अहरह: सन्ध्यां पाठ: कृत्वा शनै: शनै: ।
तस्य गेहे स्थिरालक्ष्मीं जायते नात्र संशय: ।।8।।

निष्कामभावसंयुक्तं नित्यं जपति भक्तिमान् ।

रुद्रलोकं स वै गच्छेद्वसेच्चिरं नसंशय: ।।9।।

धनं धान्यं पशुं पुत्रं विद्यां बुद्धिं बलं तथा ।

आयुर्मोक्षौ यशं चैव ऐहिकं नैहिकं लभेत् ।।10।।

।। इति श्रीमद्देवाङ्गाचार्यविरचितं प्रेमनाथपञ्चकं सम्पूर्णम् ।।

Sunday 11 August 2019

ब्राह्मणादि द्विजातियो को जनेउ कब बदलनी चाहिये-2019 "श्रावणमास 2019 मे "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) के विषयमे निर्णय"

ब्राह्मणादि द्विजातियो को जनेउ कब बदलनी चाहिये-2019

"श्रावणमास 2019 मे "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) के विषयमे निर्णय"


लेखक: डो.देवांग जे. जोषी
साहित्य-ज्यौतिष-पुराण-धर्मशास्त्राचार्य
विद्यावारीधि-विभूषित

अथोपाकर्मनिर्णयं वक्ष्याम:।।1।।
ब्राह्मणादि द्विजातियोके हेतु "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) के निर्णयको कहते है।
प्रश्न: "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) द्विजातियो(ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य) को किस हेतु करनी चाहियेॽ
उत्तर: शास्त्राज्ञाके अनुसार द्विजातियोको वेदाध्ययनका अधिकार अनादि कालसे दिया हुआ है। "वेदोऽखिलो धर्ममूलम्" आदि श्रुतिवचनोके अनुसार वेद हि सम्पूर्ण धर्मका मूल है। वेदविरुद्ध जो धर्मोका प्रचलन है वे सभी अधर्ममे समाविष्टहै। उसके लिये हम गीताजीके वचनसे प्रमाण देते है - "अधर्मं धर्ममिति या मन्यन्ते तमसावृता। सर्वार्थान्विपरितांश्च बुद्धि: सा पार्थ तामसी।।" श्रीमद् भगवद्गीता- अध्याय: 18, श्लोक: 32। तमोगुण(अज्ञान जन्य अंधकार) प्रधान जीव 'अधर्मकोहि धर्म मानकर अधर्मकाहि आचरण करते है। वेदादि सभी शास्त्रोके अर्थको विपरित रूपसे हि समजते है।' ऐसे तमोगुण प्रधान जीव नरकगामी होते है। 
द्विजातियोको वेदोपदिष्ट धर्मका भलिभाँति पालन करना चाहिये अत:  "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) करनेके लिये वेदोकि आज्ञा है।
      उपाकर्म वेदपाठ या पढते समय वेदमंत्रोके उच्चारणमे ह्रस्व-दीर्घ-प्लुत-स्वरितादि अनेक अशुद्धि(गलतीयांँ) होति है। मंत्रोका नियम विरुद्ध पाठ करने से, अपवित्र अवस्थामे, अपवित्र स्थान पर, अपवित्र जीवो के सुनते हुवे वेदमंत्र पाठ करनेसे प्रत्यवाय(पाप) उत्पन्न होता है उसके विनाश हेतु एक प्रायश्चित्त के रूपमे "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) करना अनिवार्य है। जिससे उपरोक्त पापोका शमन होता है। न करने से ब्राह्मणादि द्विजातियाँ पापकि भागी होती है। अत: प्रयत्न पूर्वक इसे करना चाहिये। उपाकर्ममे उसके अंगभूत हेमाद्रिप्रोक्त स्नान संकल्प, देहशुद्धि प्रायश्चित्त(दशविधस्नान), विष्णुश्राद्धादि प्रायश्चित्तोके करनेसे से दुसरा लाभ यह होता है कि साल भरके जितने प्रत्यवाय(पाप) होतेहै उनका उपशमन होता है। प्रायश्चित्तसे जीवात्माकि शुद्धि होति है, पश्चात हि यज्ञोपवित(जनेउ) मे देवता सन्निहित होते है। अपवित्र(पापी) जीवोके आवाहन करने परभी यज्ञोपवितके देवता यज्ञोपवितमे प्रतिष्ठित नहि होते। अत: प्रायश्चित्तसे पूत(पवित्र) होकर हि जनेउ बदलनेके लिये वेदोका आदेश है। प्रमादवश कोइ द्विजाति अगर इसका उपहास करे तो वो पातकी होता है। इसलिये किसिभी स्थिति मे हर द्विज आलस्यको त्याग कर पूर्वोत्तरांग प्रायश्चित्तके साथ जनेउ बदले।

        अब जनेउ बदलने के काल-निर्णयको कहते है। प्रश्न: "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) किस समय करेॽ
उत्तर: "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) प्रमुख रूपसे  श्रावणमास कि श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा(पूनम) के दिन करना चाहिये यह सर्वसामान्य सिद्धांत है परंतु इसमे भी शास्त्रार्थका बहुत विस्तार है।

  • प्रयोगपारिजातमे शौनक मत:- श्रावण मासके श्रवण नक्षत्रसे युक्त दिनमे अथवा श्रावणमासकि पूर्णिमाको अथवा हस्तनक्षत्र युक्त पंचमीको शास्त्रोके अनुसार  "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) करे, पढे हए वेदोका उपाकर्म उपासनाकी अग्निमे करे।      
  • हेमाद्रिके मतसे:- पूर्णिमाका उपसंहार होनेसे यजुर्वेदियोके निमित्त है- अर्थात् यजुर्नेदियोको "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि)के लिये पूर्णिमाका समाप्ति काल लेना चाहिये। अथवा उस मास मे हस्तनक्षत्र युक्त पंचमी को उपाकर्म कर सकते है।
  • उपाकर्मके लिये गुरुका अग्नि श्रेष्ठ है। विकल्पसे श्रौत, स्मार्त दोनो मेसे जो लभ्य हो वहि लेनी चाहिये। दोनोमेसे कोइभी लभ्य न हो तब लौकिकाग्निमे हि उपाकर्म संपन्न करे।
  • दिपिकायाम्:- "वेदोपाकृतिरोषधिप्रजनने पक्षे सति श्रावणे।" अर्थात् ओषधियोके उपजने पर श्रावण मासमे उपाकर्म करे।
  • सूत्रानुसारम्:- "अथातोऽध्यायोपाकरणमोषधीनां प्रदुर्भावे श्रवणेन श्रावणस्य पंचम्यां हस्तेन वा।" अत्र श्रवणो मुख्याऽन्ये गौणा:।
  • हेमाद्रौ व्यास: :- "धनिष्ठासंयुतं कुर्याच्छ्रावणं कर्म यद्भवेत्। तत्कर्म सफलं ज्ञेयमुपाकरणसंज्ञितम्।। श्रवणेन तु यत्कर्म ह्युत्तराषाढसंयुतम्। संवत्सरकृतोध्यायस्तत्क्षणादेव नश्यति।।" इति।
  • गार्ग्य: :- "उदयव्यापिनी त्वेव विष्ण्वर्क्षे घटिकाद्वयम्। तत्कर्म सफलं ज्ञेयं तस्य पुण्य त्वनन्तकम्।।" इति।
निर्णय: :-
         उपरोक्त विविध ऋषिप्रवरोके मतोसे यह युक्तियुक्त सिद्ध होता है कि श्रावण मास मे जब ओषधियाँ उपज जाय तब श्रावण मास कि पूर्णिमा श्रवण नक्षत्र युक्त उपाकर्म हेतु लेनी चाहिये।  श्रवण नक्षत्र धनिष्ठासे संयुक्त लेना चाहिये। धनिष्ठा युक्त श्रवण नक्षत्र सभी कर्मोको सफल कराता है इसलिये यह उत्तम योग है। परंतु ध्यान रहे उत्तराषाढा युक्त श्रवण नक्षत्र उपाकर्ममे कभी भी नहि लेना, क्युकि इस मे किये सभी कर्म विफल हो जाते है। उदयव्यापिनी पूर्णिमा दो घडि तक चलती हो खास करके वह लेनी चाहिये। यजुर्वेदी और अथर्ववेदीयो को इसि सिद्धांतका अनुसरण करना चाहिये अन्यो को अपने अपने गृह्यसूत्रोके अनुसार करना।

विक्रम संवत 2075 साधारण संवत्सर
वर्ष: 2019
दिनांक: 15-08-2019
धनिष्ठायुक्त श्रवण नक्षत्र मे उपाकर्म(जनेउ बदलना) करना चाहिये। यह शास्त्रसंमत निर्णय है।

लेख संपादन: विक्रम संवत-2075 साधारण नाम संवत्सर श्रावण मास शुक्ल एकादशी




Ram mandir

aajtak.inनई दिल्ली, 10 August 2019
पहले राम मंदिर की सुनवाई पर तारीख पर तारीख आती थी लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट ने अपनी परंपरा को तोड़ते हुए हफ्ते में पांच दिन सुनवाई का फैसला लिया तो मुस्लिम पक्ष में विरोध में खड़ा हो गया. सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने चीफ जस्टिस से कहा कि वो हफ्ते में पांच दिन सुनवाई के लिए कोर्ट की मदद नहीं कर सकते हैं क्योंकि हमें दिन-रात अनुवाद के कागज पढ़ने होते हैं और अन्य तैयारियां करनी पड़ती हैं. इसलिए हफ्ते में पांच दिन सुनवाई के फैसले से हड़बड़ी होगी. आपको बता दें कि राम मंदिर के पक्षकार लंबे समय से रोजाना सुनवाई कर जल्द से जल्द फैसले की मांग कर रहे थे. ऐसे में वक्फ बोर्ड की दलील से क्या ऐसा नहीं लगता कि वो मामले को लगातार लटकाए रखने के पक्ष में है? आज के दंगल में इस फैसले से जुड़े तमाम पहलुओं की चर्चा करेंगे. 

।।अथ आत्मपञ्चकम्।।

।।अथात्मपञ्चकम्।। न च ज्ञानबुद्धिर्न मे जीवसंज्ञा न च श्राेत्रजीह्वा न च प्राणचेत:। न मेवास्ति बन्धं नचैवास्ति मोक्षं प्रकाशस्वर...