Sunday 11 August 2019

ब्राह्मणादि द्विजातियो को जनेउ कब बदलनी चाहिये-2019 "श्रावणमास 2019 मे "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) के विषयमे निर्णय"

ब्राह्मणादि द्विजातियो को जनेउ कब बदलनी चाहिये-2019

"श्रावणमास 2019 मे "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) के विषयमे निर्णय"


लेखक: डो.देवांग जे. जोषी
साहित्य-ज्यौतिष-पुराण-धर्मशास्त्राचार्य
विद्यावारीधि-विभूषित

अथोपाकर्मनिर्णयं वक्ष्याम:।।1।।
ब्राह्मणादि द्विजातियोके हेतु "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) के निर्णयको कहते है।
प्रश्न: "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) द्विजातियो(ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य) को किस हेतु करनी चाहियेॽ
उत्तर: शास्त्राज्ञाके अनुसार द्विजातियोको वेदाध्ययनका अधिकार अनादि कालसे दिया हुआ है। "वेदोऽखिलो धर्ममूलम्" आदि श्रुतिवचनोके अनुसार वेद हि सम्पूर्ण धर्मका मूल है। वेदविरुद्ध जो धर्मोका प्रचलन है वे सभी अधर्ममे समाविष्टहै। उसके लिये हम गीताजीके वचनसे प्रमाण देते है - "अधर्मं धर्ममिति या मन्यन्ते तमसावृता। सर्वार्थान्विपरितांश्च बुद्धि: सा पार्थ तामसी।।" श्रीमद् भगवद्गीता- अध्याय: 18, श्लोक: 32। तमोगुण(अज्ञान जन्य अंधकार) प्रधान जीव 'अधर्मकोहि धर्म मानकर अधर्मकाहि आचरण करते है। वेदादि सभी शास्त्रोके अर्थको विपरित रूपसे हि समजते है।' ऐसे तमोगुण प्रधान जीव नरकगामी होते है। 
द्विजातियोको वेदोपदिष्ट धर्मका भलिभाँति पालन करना चाहिये अत:  "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) करनेके लिये वेदोकि आज्ञा है।
      उपाकर्म वेदपाठ या पढते समय वेदमंत्रोके उच्चारणमे ह्रस्व-दीर्घ-प्लुत-स्वरितादि अनेक अशुद्धि(गलतीयांँ) होति है। मंत्रोका नियम विरुद्ध पाठ करने से, अपवित्र अवस्थामे, अपवित्र स्थान पर, अपवित्र जीवो के सुनते हुवे वेदमंत्र पाठ करनेसे प्रत्यवाय(पाप) उत्पन्न होता है उसके विनाश हेतु एक प्रायश्चित्त के रूपमे "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) करना अनिवार्य है। जिससे उपरोक्त पापोका शमन होता है। न करने से ब्राह्मणादि द्विजातियाँ पापकि भागी होती है। अत: प्रयत्न पूर्वक इसे करना चाहिये। उपाकर्ममे उसके अंगभूत हेमाद्रिप्रोक्त स्नान संकल्प, देहशुद्धि प्रायश्चित्त(दशविधस्नान), विष्णुश्राद्धादि प्रायश्चित्तोके करनेसे से दुसरा लाभ यह होता है कि साल भरके जितने प्रत्यवाय(पाप) होतेहै उनका उपशमन होता है। प्रायश्चित्तसे जीवात्माकि शुद्धि होति है, पश्चात हि यज्ञोपवित(जनेउ) मे देवता सन्निहित होते है। अपवित्र(पापी) जीवोके आवाहन करने परभी यज्ञोपवितके देवता यज्ञोपवितमे प्रतिष्ठित नहि होते। अत: प्रायश्चित्तसे पूत(पवित्र) होकर हि जनेउ बदलनेके लिये वेदोका आदेश है। प्रमादवश कोइ द्विजाति अगर इसका उपहास करे तो वो पातकी होता है। इसलिये किसिभी स्थिति मे हर द्विज आलस्यको त्याग कर पूर्वोत्तरांग प्रायश्चित्तके साथ जनेउ बदले।

        अब जनेउ बदलने के काल-निर्णयको कहते है। प्रश्न: "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) किस समय करेॽ
उत्तर: "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) प्रमुख रूपसे  श्रावणमास कि श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा(पूनम) के दिन करना चाहिये यह सर्वसामान्य सिद्धांत है परंतु इसमे भी शास्त्रार्थका बहुत विस्तार है।

  • प्रयोगपारिजातमे शौनक मत:- श्रावण मासके श्रवण नक्षत्रसे युक्त दिनमे अथवा श्रावणमासकि पूर्णिमाको अथवा हस्तनक्षत्र युक्त पंचमीको शास्त्रोके अनुसार  "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि) करे, पढे हए वेदोका उपाकर्म उपासनाकी अग्निमे करे।      
  • हेमाद्रिके मतसे:- पूर्णिमाका उपसंहार होनेसे यजुर्वेदियोके निमित्त है- अर्थात् यजुर्नेदियोको "उपाकर्म" (जनेउ बदलनेकि विधि)के लिये पूर्णिमाका समाप्ति काल लेना चाहिये। अथवा उस मास मे हस्तनक्षत्र युक्त पंचमी को उपाकर्म कर सकते है।
  • उपाकर्मके लिये गुरुका अग्नि श्रेष्ठ है। विकल्पसे श्रौत, स्मार्त दोनो मेसे जो लभ्य हो वहि लेनी चाहिये। दोनोमेसे कोइभी लभ्य न हो तब लौकिकाग्निमे हि उपाकर्म संपन्न करे।
  • दिपिकायाम्:- "वेदोपाकृतिरोषधिप्रजनने पक्षे सति श्रावणे।" अर्थात् ओषधियोके उपजने पर श्रावण मासमे उपाकर्म करे।
  • सूत्रानुसारम्:- "अथातोऽध्यायोपाकरणमोषधीनां प्रदुर्भावे श्रवणेन श्रावणस्य पंचम्यां हस्तेन वा।" अत्र श्रवणो मुख्याऽन्ये गौणा:।
  • हेमाद्रौ व्यास: :- "धनिष्ठासंयुतं कुर्याच्छ्रावणं कर्म यद्भवेत्। तत्कर्म सफलं ज्ञेयमुपाकरणसंज्ञितम्।। श्रवणेन तु यत्कर्म ह्युत्तराषाढसंयुतम्। संवत्सरकृतोध्यायस्तत्क्षणादेव नश्यति।।" इति।
  • गार्ग्य: :- "उदयव्यापिनी त्वेव विष्ण्वर्क्षे घटिकाद्वयम्। तत्कर्म सफलं ज्ञेयं तस्य पुण्य त्वनन्तकम्।।" इति।
निर्णय: :-
         उपरोक्त विविध ऋषिप्रवरोके मतोसे यह युक्तियुक्त सिद्ध होता है कि श्रावण मास मे जब ओषधियाँ उपज जाय तब श्रावण मास कि पूर्णिमा श्रवण नक्षत्र युक्त उपाकर्म हेतु लेनी चाहिये।  श्रवण नक्षत्र धनिष्ठासे संयुक्त लेना चाहिये। धनिष्ठा युक्त श्रवण नक्षत्र सभी कर्मोको सफल कराता है इसलिये यह उत्तम योग है। परंतु ध्यान रहे उत्तराषाढा युक्त श्रवण नक्षत्र उपाकर्ममे कभी भी नहि लेना, क्युकि इस मे किये सभी कर्म विफल हो जाते है। उदयव्यापिनी पूर्णिमा दो घडि तक चलती हो खास करके वह लेनी चाहिये। यजुर्वेदी और अथर्ववेदीयो को इसि सिद्धांतका अनुसरण करना चाहिये अन्यो को अपने अपने गृह्यसूत्रोके अनुसार करना।

विक्रम संवत 2075 साधारण संवत्सर
वर्ष: 2019
दिनांक: 15-08-2019
धनिष्ठायुक्त श्रवण नक्षत्र मे उपाकर्म(जनेउ बदलना) करना चाहिये। यह शास्त्रसंमत निर्णय है।

लेख संपादन: विक्रम संवत-2075 साधारण नाम संवत्सर श्रावण मास शुक्ल एकादशी




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